Monday, February 23, 2009

महाकाल के ऐसे दर्शन

लगभग तीन साल पहले की बात है, मैं किसी काम से इंदौर गया था। काम जल्दी हो गया तो मैंने अपने इंदौर के दोस्तों को फोन लगाया, वर्किंग डे और दोपहर का समय, दोस्तों ने कुछ व्यस्तता जाहिर कि और शाम को मिलने की बात कही। मैंने उज्जैन में अपने एक मित्र, जो कि मध्यप्रदेश टूरिस्म के होटल में महाप्रबंधक थे, को फोन मिलाया तो उन्होंने तपाक से कहा- उज्जैन आ जाओ, महाकाल के दर्शन कर जाओ। ऑफ़र बड़ा ही अच्छा था, ड्राईवर से कहा कि उज्जैन का रास्ता पता करो। थोड़ी ही देर में हम उज्जैन के रस्ते पर थे। करीब डेढ़ घंटे बाद जब उज्जैन पहुंचे तो शाम ढलने में काफी समय था. एस एस भार्गव, जो कि महाप्रबंधक थे, इंतजार करते मिले। उन्होंने कहा कि तैयार हो जाइये, फिर राजू के साथ दर्शन करने चले जाइये। मैंने पूछा- राजू कौन है? तो जवाब मिला- गाइड है।
थोड़ी देर बाद हम दोनों निकले, तो राजू ने कहा कि पहले संदीपनी आश्रम चलते हैं। मैं कुछ कह पता उससे से पहले ही राजू ने कहा- महाकाल के दर्शन सबसे आख़िर में करेंगे और तभी इसका कारण बताएँगे। राजू ने क्रम से उज्जैन के सभी मंदिरों और महत्वपूर्ण स्थलों के दर्शन कराये। फिर जब महाकाल के मन्दिर पहुंचे तो उसने कहा- महाकाल उज्जैन के राजा हैं, वो नहीं चाहते कि कोई भी भक्त उनके सीधे दर्शन को आ जाए। वो चाहते हैं कि भक्त पहले प्रहरी से मिले, फिर सेनापति, कुलदेवी और इसी क्रम में उन सबसे मिलने जाए, जिनकी अवज्ञा नहीं की जानी चाहिए, और अंत में राजा से मिलने आए, तभी इस दर्शन का पूरा पुण्य मिलता है। हाँ, बाद में राजू हमें अष्टग्रही मन्दिर ले गए, जो शहर से बाहर की ओर स्थित है। लेकिन एक बात जरूर थी इस नए तरीके से दर्शन करने में आनंद बहुत आया और जब यह पता चला कि राजू लेखक हैं और उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हों चुकीं हैं, तो उज्जैन में एक दोस्त और बढ़ गया।

Wednesday, February 18, 2009

सीख से परे

दोस्तों को सचेत करना टेढी खीर है। मैंने पाया है कि जब भी कोई दोस्त सलाह मांगते हैं करते सलाह का उल्टा हैं। हालाँकि पहले-पहले मुझे बुरा लगता था। फ़िर मैंने यह भी पाया कि सलाह लेने वाला दोस्त भले ही उल्टा करता है पर वह काफी सचेत रहता है कि वो बात न होने पाए जिसके प्रति मैंने आगाह किया है। लेकिन कई बार वैसा ही हुआ जिसकी मैंने आशंका व्यक्त की थी, तब सम्बंधित दोस्त कई दिनों तक आँखे चुराते रहते थे, जो हिम्मती होते थे वो स्वीकार करते थे कि तुम्हारी सलाह न मानने से नुकसान हुआ पर अगली बार भी सलाह का उल्टा ही करते थे। इससे मैंने निष्कर्ष निकला है कि अधिकांश दोस्त सीख से परे होते हैं। हाँ, अगर आज भी वो सलाह मांगते हैं तो मैं देने में पीछे नहीं हटता, जब भी सीख देने कि जरुरत पड़ती है, निष्पक्ष बात ही कहता हूँ, कोई माने या न माने.

Saturday, February 7, 2009

ऐसी भूल

पब्लिक लाइफ में दो दशक बिताने के बाद मैं हमेशा यही मानता हूँ कि किसी भी व्यक्ति को समझना बहुत कठिन नहीं होता, लेकिन एक ऐसा कटु अनुभव दिल में छिपा है जो पहचानने में हुई भूल की पराकाष्ठा है।
पॉँच-छः साल पुरानी बात है, हमेशा की तरह मध्य रात्रि के बाद काम निपटा कर घर जाने के लिए ऑफिस से बाहर निकला तो बाजू में स्थित एक अपार्टमेन्ट के नीचे दीवाल से सटकर कोई खड़ा दिखा। रात में सतर्क रहने की आदत है इसी कारण उसका हिलता हुआ हाथ आसानी से दिख गया। कार रोकी तो वहां एक लड़की नजर आई जो तत्काल ही बाहर आ गई। उसने रेलवे स्टेशन तक छोड़ देने का आग्रह किया। दिमाग ने कहा ऑफिस से किसी को बुला लो। इतने में कार रुकी देख दो-तीन जूनियर आ ही गए। सभी ने एक मत निर्णय लिया कि लड़की को पुलिस को सौंप देना चाहिए।
समीप ही सिविल लाइंस थाना था जहाँ फ़ोन कर् दिया तो पुलिस भी आ गई। हालाँकि लड़की बार- बार कहती रही कि उसे पुलिस के पास मत भेजो... गड़बड़ हो जायेगी लेकिन तबतक पुलिस आ ही गई थी। पुलिस ने लड़की से पूछा कि वह कहाँ की रहने वाली है? लड़की ने बड़ी मुश्किल से बताया कि पास के शहर दमोह से किसी के साथ आई थी, समय का पता नहीं चला, लाने वाला चला गया अब वह अकेली है, स्टेशन पर छोड़ दो सुबह होते ही चली जायेगी। पर पुलिस ने तय किया कि उसे महिला पुलिस स्टेशन में छोड़ देते हैं। और यही किया। अगले दिन उस लड़की की मासूमियत पर यह स्टोरी छापी कि उसकी माँ और सौतेले पिता ने उसे घर से निकाल दिया है। गोरी-चिट्टी सुंदर सी इस लड़की को गोद लेने के लिए एक संभ्रांत परिवार तैयार हो गया।
दो-चार दिनों तक लड़की की ख़बर ली तो पता चला कि बच्चों ने उसे बड़ी दीदी मान लिया है। सब कुछ बढ़िया चल रहा है, सब खुश भी हैं। करीब एक पखवाडे बाद जब फ़िर से उस लड़की कि याद आई तो उस परिवार को फोन किया और जो सुना उससे पैरों के नीचे की जमीन किसक गई।
उस परिवार ने घर पर बुलाकर पूरी कहानी सुनाई। वह लड़की पक्की कॉलगर्ल थी। उसने घर के फोन से ही अपने ग्राहकों को फोन करना शुरू कर् दिया था। गोद लेने वाले मियां बीवी काम पर चले जाते थे और पीछे से लड़की गड़बड़ करती थी। जब शक हुआ तो उसका मेडिकल परीक्षण कराया गया, जिसमे पुष्टि भी हो गई। वह संभ्रांत परिवार मरता क्या न करता, पुलिस के सहयोग से किसी तरह उससे छुट्टी पायी और भविष्य में ऐसी सहायता न करने कि कसम भी खाई। इस स्टोरी ने यह तो आपको स्पष्ट कर् दिया होगा कि भूल किसी से भी हो सकती है किसी को पहचानने में।

Tuesday, January 27, 2009

बहुत दिनों के बाद

ब्लॉग पर लिखना काफी आसान है लेकिन लिख पाना बहुत कठिन, यह अनुभव तब हुआ जब व्यस्तता के कारण काफी दिनों तक कुछ लिख नहीं पाया। इस बीच मेरा ब्लॉग नियमित तौर पर पढ़ने वाले मेरे दोस्तों ने मुझसे सवाल भी किया कि क्या बात है कुछ लिख नहीं रहे हो? मैंने व्यस्तता कि बात कह दी। फ़िर मैंने सोचा कि ब्लॉग पर लिखना बंद नहीं करना चाहिए, चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, लेकिन लिख नहीं पाया। आज एक साथ कई दोस्तों ने टोक दिया तब मैंने ब्लॉग खोला और लिख्नना शुरू किया, कई बार विघ्न आए पर लिखना जारी रखा, अंततः लिख डाला। बहुत दिनों से मैं कुछ कहना चाह रहा था, शायद आज सही वक्त आ गया है। भले ही ब्लॉग कोई पढ़े या न पढ़े लेकिन ब्लॉग लिखने से स्वान्तः सुखाय का सुख तो मिलता ही है। इसलिए मेरा सभी दोस्तों से आग्रह है कि ब्लोगिंग शुरू कर दे अभी से ही.