Wednesday, February 18, 2009

सीख से परे

दोस्तों को सचेत करना टेढी खीर है। मैंने पाया है कि जब भी कोई दोस्त सलाह मांगते हैं करते सलाह का उल्टा हैं। हालाँकि पहले-पहले मुझे बुरा लगता था। फ़िर मैंने यह भी पाया कि सलाह लेने वाला दोस्त भले ही उल्टा करता है पर वह काफी सचेत रहता है कि वो बात न होने पाए जिसके प्रति मैंने आगाह किया है। लेकिन कई बार वैसा ही हुआ जिसकी मैंने आशंका व्यक्त की थी, तब सम्बंधित दोस्त कई दिनों तक आँखे चुराते रहते थे, जो हिम्मती होते थे वो स्वीकार करते थे कि तुम्हारी सलाह न मानने से नुकसान हुआ पर अगली बार भी सलाह का उल्टा ही करते थे। इससे मैंने निष्कर्ष निकला है कि अधिकांश दोस्त सीख से परे होते हैं। हाँ, अगर आज भी वो सलाह मांगते हैं तो मैं देने में पीछे नहीं हटता, जब भी सीख देने कि जरुरत पड़ती है, निष्पक्ष बात ही कहता हूँ, कोई माने या न माने.

3 comments:

बाल भवन जबलपुर said...

बात कितनी भी पर्सनल सी हो किंतु सर्वकालिक सार्वभौमिक सी है
बधाइयां

RAJNISH PARIHAR said...

aapki dosti kaabile taarif hai...isi tarah likhte rahen...

मेरे मुहल्ले का नुक्कड़ said...

mujhe lagta hai ki kuchh dost apvad bhi hi sakte hai.
ajay