skip to main |
skip to sidebar
सच को स्वीकारना हर किसी के बस की बात नहीं है खासकर उन नेताओं की, जो झूठ बोलकर वोट लेने के आदी हो चुकें हैं। मुंबई हादसे के बाद जब जनता ने सड़कों पर अपना आक्रोश दिखाया तो यही नेता आज भूमिगत होने की कगार पर पहुँच गये। दरअसल ये नेता सच को स्वीकारना नहीं चाहते हैं। वे ये मानना नहीं चाहते कि देश की आज जो स्थिति है, उसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार है। आतंकियों को जो करना था वे कर के चले गए, भविष्य में भी यदि वो चाहेंगे तो कोई नया गुल खिला जायेंगे। इसका सीधा अर्थ यह है कि जब तक तुष्टिकरण कि नीति चलती रहेगी, आतंकवाद पर काबू पाना सम्भव नहीं रहेगा। इस बार के हादसे में यह बात जरूर उल्लेखनीय रही है कि आतंकियों ने अपने किसी साथी को छुड़ाने कि मांग नहीं रखी अन्यथा इन्हीं नेताओं कि हालत देखते बनती! इनका कोई सगा सम्बन्धी यदि बंधक बना लिया गया होता तो ये उसे छुड़ाने के लिए हर सम्भव प्रयास करते चाहे उसके लिए किसी दुर्दांत आतंकी को छोड़ना ही क्यों न पड़ जाता। नेताओं को सच स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनकी दोगली नीतिओं ने देश का बंटाधार कर दिया है। साथ ही पश्चाताप करते हुए ये वादा करना चाहिए कि वोटों की खातिर देश की सुरक्षा से समझौता नहीं करेंगे।