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यह बात या तो 1969 की होगी या फ़िर 1973 की, क्योंकि ओशो इन्हीं दो वर्षों में जब जबलपुर आए होंगे तब मैं इतना छोटा रहा हूँगा की मुझे इस अदभुत घटना कि याद नहीं है। मेरे पापा और मम्मी ओशो के प्रवचन सुनने पोलिटेक्निक कॉलेज पहुंचे, तब ओशो भगवान रजनीश के नाम से पहचाने जाते थे। दोनों ये बताते हैं कि प्रवचनों के दौरान मैं खेल रहा था। मेरी आवाज से कुछ डिस्टर्ब हो रहा था तो हर कोई मेरी और देखने लग गया। भगवान रजनीश, जो कि सामने बैठकर प्रवचन दे रहे थे, भी मेरी हरकतों को देख रहे थे। इससे पहले कि आयोजक कुछ कह पाते ओशो ने अचानक से मुझे अपनी और खींचा और गोद में बिठा लिया। कुछ क्षणों के लिए दुलारा और फ़िर नीचे छोड़ दिया। मम्मी और पापा का कहना है कि उसके बाद प्रवचन काफी देर तक चलते रहे पर मैं फ़िर शांत ही बैठा रहा। इसके बाद भी जब कभी मुझे ऐसे किसी कार्यक्रम में ले जाया गया तो मैंने कभी परेशान नहीं किया।