लगभग तीन साल पहले की बात है, मैं किसी काम से इंदौर गया था। काम जल्दी हो गया तो मैंने अपने इंदौर के दोस्तों को फोन लगाया, वर्किंग डे और दोपहर का समय, दोस्तों ने कुछ व्यस्तता जाहिर कि और शाम को मिलने की बात कही। मैंने उज्जैन में अपने एक मित्र, जो कि मध्यप्रदेश टूरिस्म के होटल में महाप्रबंधक थे, को फोन मिलाया तो उन्होंने तपाक से कहा- उज्जैन आ जाओ, महाकाल के दर्शन कर जाओ। ऑफ़र बड़ा ही अच्छा था, ड्राईवर से कहा कि उज्जैन का रास्ता पता करो। थोड़ी ही देर में हम उज्जैन के रस्ते पर थे। करीब डेढ़ घंटे बाद जब उज्जैन पहुंचे तो शाम ढलने में काफी समय था. एस एस भार्गव, जो कि महाप्रबंधक थे, इंतजार करते मिले। उन्होंने कहा कि तैयार हो जाइये, फिर राजू के साथ दर्शन करने चले जाइये। मैंने पूछा- राजू कौन है? तो जवाब मिला- गाइड है।
थोड़ी देर बाद हम दोनों निकले, तो राजू ने कहा कि पहले संदीपनी आश्रम चलते हैं। मैं कुछ कह पता उससे से पहले ही राजू ने कहा- महाकाल के दर्शन सबसे आख़िर में करेंगे और तभी इसका कारण बताएँगे। राजू ने क्रम से उज्जैन के सभी मंदिरों और महत्वपूर्ण स्थलों के दर्शन कराये। फिर जब महाकाल के मन्दिर पहुंचे तो उसने कहा- महाकाल उज्जैन के राजा हैं, वो नहीं चाहते कि कोई भी भक्त उनके सीधे दर्शन को आ जाए। वो चाहते हैं कि भक्त पहले प्रहरी से मिले, फिर सेनापति, कुलदेवी और इसी क्रम में उन सबसे मिलने जाए, जिनकी अवज्ञा नहीं की जानी चाहिए, और अंत में राजा से मिलने आए, तभी इस दर्शन का पूरा पुण्य मिलता है। हाँ, बाद में राजू हमें अष्टग्रही मन्दिर ले गए, जो शहर से बाहर की ओर स्थित है। लेकिन एक बात जरूर थी इस नए तरीके से दर्शन करने में आनंद बहुत आया और जब यह पता चला कि राजू लेखक हैं और उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हों चुकीं हैं, तो उज्जैन में एक दोस्त और बढ़ गया।
फ़िर ना हो ऐसी होली
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होली ने इस बार ऐसा गजब ढाया कि लगा जबलपुर फ़िर से संस्कारधानी से अपराधधानी
बन गया है। शहर की ऐसी कोई गली नहीं थी जहाँ चाकू-तलवारें ना चली हों। शराब की
दुकान...
16 years ago
5 comments:
sach manish bhai
Raju ne zindagi kaa falsafaa bataayaa ki sab kuchh sahaj naheen jo sahaj hai vo kaam to sab kar leten hai
raju ko meraa abhivadan
आपके संस्मरणों कि किताब का सबसे पहला प्रशंसक होने का सोभाग्य मुझे मिले यही कामना करता हूँ
इस संस्मरण ने "गाइड" के राजू कि याद दिला दी;
बहरहाल सिर्फ महाकाल के दर्शनों के लिए ही नहीं , जीवन के उतर चढावो में सीधे राजा से न मिलने कि भी सीख मिली ताकि वे नाराज न हों
really you are a great journalist. in few words you make a full picture of religion and society.
क्या बात मनीष भाई, आपने तो गाईड पिक्चर के राजू (देव आनंद) की याद दिला दी। और इतने दिनों से आप कहाँ हैं ? आगे भी तो लिखते चलिए। आपका ब्लॉग ब्लॉगवाणी एवं चिट्ठाजगत में शायद दर्ज नहीं है। इसे जल्द वहाँ रजिस्टर कराएँ। वर्ड वैरिफ़िकेशन को समाप्त करें ताकि टिप्पणी देने में आसानी हो। अगली पोस्ट के इंतज़ार में।
ब्लॉग जगत में स्वागत है....अच्छी शुरुआत है.एक नज़र मेरे ब्लॉग www.jugaali.blogspot.com पर भी मार लेना
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