*आज की कहानी*
जब से देश में लॉकडाउन हुआ है और जबलपुर में कर्फ़्यू लगा है, तब से मेरा बाहर निकलना घर सेऑफ़िस और ऑफ़िस से घर तक ही सीमित था...चूँकि ऑफ़िस में काफ़ी लोग आते हैं औरएक्सपोज़र का ख़तरा होता है तो मैं घर में भी किसी को बुलाता नहीं हूँ और किसी के यहाँ जाता भीनहीं हूँ...ऐसे में आज मुझे लगा कि शहर का भ्रमण करना चाहिए... इसी बीच हर्रई फार्म जाने काख़्याल भी दिमाग़ पर हावी हो गया...
मैं करीब १२ बजे घर से निकला और मेडिकल कॉलेज तक मुझे कुछ दुपहिए और चार पहिए वाहनमिले... पर एम्बुलेंस ४-५ मिल गईं. दुकानें बिल्कुल बंद थीं... पर सड़कों पर होली की नहीं बल्किदिवाली की परिवा जैसा सन्नाटा था. पुलिस के पोईँट लगे थे पर कोई चेकिंग नहीं थी, सब स्वस्फूर्तचल रहा था. दवा की दुकानों के आगे खासी भीड़ थी, मॉडल रोड वाले दवा मार्केट में तो रिटेलर्स कामेला लगा था...अस्पताल और क्लिनिक्स के सामने भी मरीज़ और वाहन दिख रहे थे...तिलवाराघाटतक ऐसा ही नजारा था पर जैसे ही मैं हाइवे पर आया, सूनापन स्पष्ट नज़र आया.
बरगी रोड पर निगरी तक इक्का-दुक्का ट्रक दिखे, पेट्रोल पम्प खुले और अधिकांश ढाबे बंद थे. एकाध कार दिखी, जिसमें से उत्साहित नौजवान ट्रक ड्राइवर्स को रोककर भोजन के पैकेट दे रहे थे, बिना ये ख़्याल किए हुए कि ट्रक के केबिन में कोई कोरोना पीड़ित हो सकता है....बहरहाल, जैसे हीमैं निगरी से दाएँ हर्रई के लिए मुड़ा...बीच के दोनों गावों में सन्नाटा छाया हुआ था.. लौटते वक्तज़रूर एकाध बच्चे और युवा दिखे.... पर गाँव कोरोना के क़हर में पूरी तरह अनुशासन में औरअलसाए हुए थे...हाइवे के गाँव निगरी में सारी दुकानें बंद थीं... भीतरी सड़क पर हर्रई से पहले केगाँव में भी पूरी तरह सन्नाटा था...हर्रई में भी पूरी तरह शांति थी...
कहने का आशय यह है कि जबलपुर शहर में कर्फ़्यू के बीच भी लोग बाहर निकलने के लिए मचल रहेहैं... कर्फ़्यू पास के लिए सोर्स लगवा रहे हैं... पर इसी शहर के पास के गाँवों में रहने वाले ग्रामीणों नेसरकार और विशेषज्ञों की बात सबसे ज़्यादा मानी है... इसीलिए तो कहते हैं कि भारत की आत्मागाँवों में बसती है...